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________________ (७) किसी का कोई भी पारिभाषिक अभिमत रह रहा हो, किन्तु जनसाधारण इन समस्त शब्दो से सामान्यतया परमात्मा का ही बोध प्राप्त करता है । ईश्वर के तीन रूप - ऊपर की पक्तियो मे स्पष्ट कर दिया गया है, वैदिकदर्शन के यौवनकाल मे ईश्वर शब्द एक विशिष्ट और पारिभाषिक अर्थं का बोधक रहा है, किन्तु अन्तिम शताब्दियो मे इस का वह रूप परिवर्तित हो गया है । अब तो यह सामान्यतया परमात्मा का निर्देशक है । आज सभी आत्मवादी दर्शन ईश्वर को मानते है । कोई आत्मवादी दर्शन ईश्वर को सत्ता से इन्कार नही करता है । सभी इसे सहर्ष स्वीकार करते है । सामान्य रूप से सभी आत्मवादी दर्शन ईश्वर को मानते हे, किन्तु सैद्धान्तिक और साम्प्रदायिक दृष्टि से ईश्वर - सम्बन्धी गुणो मे वे थोडा-थोडा मतभेद रखते है । इसी मतभेद को लेकर आज ईश्वर के सम्बन्ध मे तीन विचार-धाराए उपलब्ध होती है । वे तीनो विचारधाराए सक्षेप मे इस प्रकार है १ - ईश्वर एक है, अनादि है, सर्वव्यापक है, सच्चिदानन्द है, घट-घट का ज्ञाता है, सर्वशक्तिमान है, जगत् का निर्माता है, भाग्य का विधाता है, कर्मफल का प्रदाना है । ससार मे जो कुछ होता है, वह सब ईश्वर के सकेत से होता है । ईश्वर पापियों का नाश करने के लिए तथा धार्मिक लोगो का उद्धार करने के लिए कभी न कभी, किसी न किसी रूप मे ससार मे जन्म लेता है, वैकुण्ठ से नीचे उतरता है और अपनी लीला दिखा कर वापिस वैकुण्ठ धाम मे जा विराजता है । ईश्वर का यह एक रूप है, जिसे आज हमारे सनातनधर्मी
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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