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________________ (१०४) सूत्राणा विषयविभाग" इति । सम्प्रत्युपसहारमाह-'सेत्त दुविहा' ते एते द्विविधा सर्वजीवा , अत्र क्वचिद्विविधवक्तव्यतासग्रहणिगाथा सिद्धसइदियकाए जोए वेए कसायलेसा य । नाणुवोगाहारा भाससरीरी य चरमो य ॥१॥ (वृत्तिकारो मलयगिरि ) हिन्दी-भावार्थ अथवा सर्वजीव दो प्रकार के कहे गए है । जेसे कि-चरम और अचरम । अनगार गौतम बोले-भदन्त ! चरम जीव चरमत्वरूप से कब तक रहते है ? भगवान महावीर ने कहा-गौतम ! चरम जीव अनादिसान्त होते है। अचरम जीव दो प्रकार के होते है, जैसेकिअनादि-अनन्त और सादि-अनन्त । दोनो प्रकार के जीवो का अन्तरकाल नही होता है। इन जीवो का अल्पबहुत्व इस प्रकार है सबसे कम अचरम जीव होते है, और चरम जीव इन से अनन्त गुणा अधिक माने गए है। इस प्रकार सर्वजीवों की व्याख्या करने वाला प्रकरण समाप्त होता है।
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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