________________
अपने गुणमें अस्तिरूप है, पंट अपने गुणमें विद्यमान है, परंतु परगुणापेक्षा दोनों नास्तिरूप हैं सो नास्ति स्वभाव है ।जो द्रव्य गुण करके नित्यरूप है सो नित्य स्वभाव है जैसे चेतन स्वभाष ॥३॥ जो नाना प्रकारकी पोयों करके नाना प्रकारके रूप धारण करे सो अनित्य स्वभाव है जैसे पुद्गलका स्वभाव संयोग वियोग है ॥ ४ ॥ जो एक स्वभावमें रहे सो एक स्वभाव जैसे सिद्ध प्रभु एक अपने निज गुण शुद्ध स्वभावमें हैं, क्योंकि काँकी अपेक्षा जीवमें मलीनता है, अपितु निजगुणापेक्षा जीव एक शुद्ध स्वभाववाला है ॥ ५ ॥ जो अनेक पर्यायों करि अनेक रूप धारण करता है सो अनेक स्वभाविक है जैसे मु. वर्णके आभूषणादि ।।६।। जहां परगुण गुणीका भेद हो उसका नाम भेद स्वभाव है, अर्थात् जो द्रव्य विरुद्ध गुण धारण करे तिसका नाम भेद स्वभाव है ॥७॥ और गुण गुणीका भेद न होना सत्य गुण वा नित्य गुणयुक्त रहना तिसका नाम अभेद स्वभाव है ॥८॥ जिसकी भविष्यत कालमें स्वरूपाकार होनेकी शक्ति है, वा सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग् चारित्रद्वारा अपने निज स्वभाव प्रगट करनेकी शक्ति रखता है तिसका नाम भव्य स्वभाव है ॥ ९॥ जो तीन कालमें भी अपने निज स्वरूपको प्रगट करनेमें असमर्थ है, अनादि कालसे मिथ्यात्वमें ही मगन