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( १५४ ) कारण वशाद लघु व्यवस्थामें ही विवाह हो गया तो लघु व्यवस्थायुक्त स्त्रीके साथ संभोग न करे, यदि करे तो प्रथम अतिचार है । अथवा. यदि उपविवाह हुआ उसके साथ संग करना जिसको मांगनां कहते हैं २। कुंचेष्टा करना अर्थात् कामके वशीभूत होकर कुचेष्टा द्वारा वीर्यपात करना ३ । तथा परका मांगना किया हुआ उसको आप ग्रहण करना (उपविवाहको) ४। और कामभोगकी तित्र अभिलाषा रखनी ५। इन पांच ही अतिचारोंको त्यागके चतुर्थ स्वदार संतोषी . तको शुद्धताके साथ धारण करे क्योंकि यह व्रत परम आल्हाद भावको उत्पन्न करनेहारा है ।। फिर पंचम अनुव्रतको धारण करे जैसेकि
इच्छा परिमाण व्रत विषय ॥ . . .
'हा परिमाणे ॥ . मित्रवरो! तृष्णा अनंती है, इसका कोइ. भी थाह नही मिलता। इच्छाके वशीभूत होते हुए प्राणी अनेक संकटोंका.सामना करते हैं, रात्री दिन इसकी ही चिंतामें लगे रहते हैं, इसके लिये कार्य अकार्य करते लज्जा नही पाते.और अयोग्य कामोंके लिये भी उद्यत हो जाते हैं, परंतु. इच्छा फिर भी पूर्ण ।