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ज्ञान है वही आत्मा है तथा जिस करके जाना जाये वही ज्ञान है । क्योंकि यह अनादि अनंत सम्बन्ध है जो परगुण सम्बन्ध हैं, कोई + अनादि सान्त हैं, कोई सादि सान्त है, अपितु परगुणका सम्बन्ध सादि अनंत नही होता है, सो जब द्रव्य गुण एकत्व हुए फिर उस द्रव्यका लक्षण पर्याय भी हो जाता है, दीपक के प्रकाशवत्, अपितु स्वगुणोंमें सर्व द्रव्य अनादि अनंन हैं, परगुणों में पर्यायार्थिक नयापेक्षा सादि सान्त हैं, यथात्वाद् व्यय श्रौष युक्तं सत्, अर्थात् जो उक्त लक्षण करके युक्त है वही सद् द्रव्य है | पुनः द्रव्य विषय
धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गल जंतवो एसलोगोत्ति पणत्तो जिणेहिंवर दंसिहिं ॥ उ० अ० २८ गाथा ७ ॥
वृत्ति-धर्म्य इति धर्मास्तिकाय ? अध इति अधर्मास्तिकाय २ आकाशमिति आकाशास्तिकायः ३ कालः समयादिरूपः ४ पुग्गलत्ति पुद्गलास्तिकाय: ५ जन्तव इति जीवाः + अभव्य आत्माओंका कर्मों के साथ अनादि अनंत सम्यन्ध भी है ।