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( १४०.) समय मृत्युको प्राप्त होगा उस समय मनुष्य योनिका उस जीव अपेक्षा अंत होगा। इसी प्रकार सर्वत्र जान लेना । और सिद्ध गतिकी अपेक्षा नीव सादि अनंत हैं, किन्तु भव्य सिद लब्धि अपेक्षा जीव अनादि सान्त है, अभव्य जीव अपेक्षा अनादि अनंत हैं ॥ सो भव्य जीवोंके कर्मोंका सम्बन्ध द्रव्यार्थिक नयापेक्षा अनादि अनंत है और पर्यायार्थिक नयापेक्षा सादि सान्त हैं ।। सो अष्ट काँके बंधनोंको छेदन करके जैसे अकाबू (तूंवा) मृत्तिकाके को छेदन करके जलके उपरि भागमें आ जाता है इसी प्रकार आत्मा कर्मोंसे रहित हो कर मोक्षमें विराजमान हो जाता है ।। सो मुनिधर्मको सम्यग् प्रकारसे पालण करके सादि अनंत पदयुक्त होना चाहिये, इसका ही नाम सर्व चारित्र है।
१ इति तृतीय सर्ग समाप्त ॥