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(१३९.) है, इस कारणसे हे गौतम ! कतिपय जीवोंके साथ काँका सम्वन्ध सादि सान्तादि कहा जाता है। श्री गौतमजी पुनः पू. छते है कि हे भगवन् ! जो वस्त्र है क्या वे सादि सान्त है वा अनादि सान्त है तथा सादि अनंत है वा अनादि अनंत है ? भी भगवान् उत्तर देते हैं कि हे गौतम ! वस्त्र सादि सान्त ही है किन्तु अन्य भंग वस्त्रमें नहीं है। __ श्री गौतमजी-यदि वस्त्र सादि सान्त पदवाला है और भंगोंसे वर्जित है तो हे भगवन् ! जीव क्या सादि सान्त हैं वा अनादि सान्त हैं तथा सादि अनंत है वा अनादि अनंत हैं ?
श्री भगवान् कतिपय जीव सादि सान्त पदवाले हैं, और कतिपय अनादि सान्त पदवाके हैं, अपितु कतिपय सादि अनंत पदवारे भी है और कतिपय अनादि अनंत पदवाले भी हैं।
श्री गौतमजी-यह कथन किस प्रकारसे सिद्ध है अर्थात् इसमें उदाहरण क्या क्या हैं ?
श्री भगवान्हे गौतम ! नारकी तिर्यक् मनुष्य देव इन योनियों में जो जीव परिभ्रमण करते हैं उस अपेक्षा (गतागतिकी) जीव सादि सान्त पदवाले हैं क्योंकि जैसे मनुष्य योनिमें कोई जीव आया तो उसकी सादि है, अपितु जिस