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( १:३२ ) प्राणी तत्वविद्याको नही प्राप्त हो सक्ते हैं; किन्तु यह कर्म जीव षट् प्रकार से बांधते हैं जैसे कि
पाणावरणिज कम्मा सरीरपजग बंधेणं भंते कम्मस्स उदय गोयमा पाए परिणीययाए १ पाए पिएदवण्याए २ पातराणं ३ पाण प्पदोसेणं ४ पाणञ्च्चासादण्याए ५ पाणविसंवादणा जोगेणं ६ ॥ भगवती सू० शतक उद्देश ॥ ॥
भाषार्थ:-श्री गौतम प्रभुजी श्री भगवान्से प्रश्न पूछते हैं कि हे भगवन् ! जीव ज्ञानावर्णी कर्म किस प्रकार से बांधते हैं || भगवान् उत्तर देते हैं कि हे गौतम! षट् प्रकारसे जीव ज्ञानावर्णी कर्म बांधते हैं जैसेकि - ज्ञानकी शत्रुता करनेसे अर्थात् सदैव काल ज्ञानके विरोधि ही बने रहना और अज्ञानको श्रेष्ठ जानना, अन्य लोगों को भी अज्ञान दशामें ही रखनेका परिश्रम करना १ ॥ तथा ज्ञानके निण्डव बनना अर्थात् जो वार्ता यथार्थ हो उसको मिथ्या सिद्ध करना तथा ज्ञानको गुप्त करना, जैसेकि किसीके पास ज्ञान है. उसने