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(१२) सावध, कुतुहलयुक्त वचन कदापि भी भाषण न करे क्योकि इन वचनों के भाषण करनेसे सत्य व्रतका रहना कठिन हो जाता है और यह नाही वचनव्रतियोंको भाषण करनेयोग्य है ॥
द्वितीय भावना-क्रोधयुक्त वचन भी न भाषण करे क्योंकि क्रोधसे वैर, वैरसे पैशुनता, पैशुनतासे क्लेष, क्लेषसे सत्य शील विनय सवका ही नाश हो जाता है, क्योंकि क्रोधरूपि अग्नि किस पदार्थको भस्म नही करता अर्थात् क्रोधरूपि अनि सरे सत्यादिका नाश कर देता है।
तृतीय भावना-सत्यवादी लोभका भी परिहार करे क्योंकि लोभके वशीभूत होता हुआ जीवं असत्यवादी बन जाता है, तो फिर व्रतोंकी रक्षा केसे हो ? इस लिये लोभको भी त्यागे ॥
चतुर्थ भावना-भयका भी परित्याग करे क्योंकि भययुक्त जीव संयमको भी त्याग देता है, सत्य और शीलसे भी मुक्त हो जाता है, अपितुं भययुक्त आत्माके भावं कभी भी स्थिर नही रहते ॥
पंचम भावना-सत्यवादी हास्यका भी परित्याग करे । हास्यसे ही विरोध, क्लेष, संग्राम, नाना मकारके कष्ट उत्पन्न