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________________ सोमवारका लेख ३५१ स्वस्ति श्रीमदाङ्गिरस -संवत्सर - पौप्य मास बहुळ- सप्तमियादित्यवारदन्दु अवर शिष्यरु शुभचन्द्र-देवर समाधिविधियिं स्वर्गस्थ - रादरु | [ जिनशासनकी प्रशसा । श्री मूलसव, कोण्डकुन्दान्चय, देशिय गण और पुस्तक- गच्छ, लोकियन्ये बसदिकी तलताल सदिके मलधारि-देव थे, कठोर तपस्यासे जिनका मारा शरीर धूल-धूसरित हो रहा था, लोहे के समान बहुत समयतक जिसपर जङ्गमी चढी हुई थी, और वल्मीक ( चींटियोकी सोढ़ी हुई मिट्टीका ढेर ) के समान हो गया था । (उत मितिको ), उनके शिष्य शुभचन्द्र-देवने समाधिके वलसे स्वर्ग प्राप्त किया । ] [ EC, VIII, Tirthahall tl, n° 199 ] २३३ हळे-वेलगोला - संस्कृत तथा कन्नड [शक १०१५ = १०९३ ई० ] ( जैन गिलालेस संग्रह, प्र० भाग ) २३४ सोमवार - कन्नड भन्न [ शक १०१७ = १०९५ ई० ] [ सोमवार (मल्लिपट्टण परगने ) में, बसव मन्दिरकी एक सोटपर ] स्वस्ति''''भद्रमस्तु जिनशासनाय स्वस्ति शक वर्ष २०१७ नेय युवसंवत्सरद भाद्रपद मासद सुद्ध - सप्तमी - गुरुवार दन्दु मकर लग्नं गुरूद - यदल श्रीमत् सुराष्ट - गणद कल्नेलेय रामचन्द्र-देवर शिव्यन्तियरप्प अरसव्वे - गन्तियर (यहाँ सम्म हो जाता है ) । [ ( उक्त मिति को ) सुराष्ट- गणके कल्नेलेके रामचन्द्र देवकी शिष्या अरसव्वे-गन्ति 1 [ EC, V, Arkalgad tl, n° 96 ] .....
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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