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हुम्मचके लेख
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[ जिनशासनको प्रशंसा । जिस समय, ( उन्हीं चालुक्य पदों सहित ), त्रिभुवनमल देवका विजयी राज्य चारों ओर प्रवर्द्धमान था-और तत्पादपझोपजीवी ( ऊपरके शिलालेख न० २१३ मे जो उपाधियाँ नन्निशान्तरकी है, उन्हीं के सहित ) महामण्डलेश्वर वीरुग या वीर शान्तर देव था । उसकी प्रशसा । उसकी रानी बीरल- महादेवी थी। उनके चार लड़केबैल, गोगिक, ओड्डग, और बम्म थे। इनमेसे तैलका नाम भुजबळ -
शान्तर, गोग्गिक या गोविन्दर देवका नन्नि शान्तर तथा ओडुगका विक्रम'शान्तर प्रसिद्ध हुआ । सबसे छोटे भाईका नाम कुमार वर्म्म- देव ही रहा। इनकी मॉ चट्टल देवी (वीरल महादेवी ) थी । उसके पिता राजा रक्स-गङ्ग, पति काञ्ची-अधिपति, गुरु श्रीविजय, और पुत्र गोग्गि (नन्निशान्तर ) थे ।
इस प्रकार, जिस समय सत्र धार्मिक गुणो और पवित्रताकी जन्मभूमि चट्टलदेवी, भुजबल शान्तर देव, नन्नि शान्तर -देव, विक्रम-शान्तर देव और देव पोम्बु थे और शान्तिसे राज्य कर रहे थे ''धर्म सर्व प्रथम चिन्तनीन है', इसका खयाल करके, धर्म उपार्जन करनेके लिये, उन्होने 'उव तिलक' नामकी पञ्च वसदिके निर्माणका कार्य अपने हाथ मे लिया । ये सव ओडेय-देवके ( श्रेयास पण्डित के शब्दों में जो श्रीविजय देवका नामान्तर है ) गृहस्थ शिष्य थे । उन सबने किसी शुभ दिन पञ्चवसदिकी नीव डाली ।
श्रेयान्सदेव आचार्योकी परम्परा वर्द्धमान स्वामी के तीर्थमें गौतम गणधर हुए । उनके पश्चात् बहुतसे त्रिकालज्ञ मुनियो के होनेके बाद क्रमशः कोण्डकुन्दाचार्य, 'श्रुतकेवली' भद्रबाहु स्वामी, बहुत-से आचार्योंके व्यतीत होनेके बाद, समन्तभद्र स्वामी, सिंहनन्द्याचार्य, अकलङ्क- देव, कनकसेन देव ( जो वादिराज नामसे भी प्रसिद्ध थे ), ओडेयदेव ( श्रीविजयदेव जिनका ऊपर नाम दिया है ), दयापाल, पुष्पसेन सिद्धान्तदेव, वादिराज - देव ( जो 'षट् तर्क षण्मुख' तथा 'जगदेकमल्ल घादि' नामसे भी प्रसिद्ध थे ), कमलभद्र-देव, अजितसेन देव ( प्रशसासहित ) हुए | और अजितसेन देवके सहधर्मी शब्द-चतुर्मुख, तार्किक - चक्रवतीं वादी मसिह हुए | तत्पश्चात् कुमारसेनदेव मुनीन्द्र । इनके बाद श्रेयान्सदेव हुए !
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