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३०४ जैन-शिलालेख संग्रह
विद्याना परिनिष्ठित-क्षिति-तळं तन्मुळमाळम्बनम्
चित्ते तेऽजितसेन-देव विदुपा वृत्त विचित्रीयते ॥ अन्तेनिसिद शब्द-चतुर्मुखनुं तार्किक चक्रवर्तियु वादीभसिंहनुमेनिसिदजितसेन-देवर सह-धम्भिगळु
दुरित-कुळ-प्रध्वस । स्मर-माद्यत्-कुम्भि-कुम्भदळन-मृगेन्द्रम् । वर-वाग्-बनिता-कान्तम् ।
धरेयोळ् नेगर्दी-कुमारसेन देव-मुनीन्द्रम् ॥ अन्तेनिसिद कुमारसेन-देवरिं वैद्य-गजकेसरियेनिसिद श्रेयान्स देवरन्तवरायुवी-तिलकमेनिसिद पञ्च-बसदियना- शक-वर्पद९९९नेय पिङ्गळ-संवत्सरद ज्येष्ठ-शुद्ध-विदिगे-वृहस्पतिवारदन्दु प्रतिष्ठेय माडिया-वसदिय खण्ड-स्फुटित-जीर्णोद्धारणकमल्लिई ऋषि-समुदायदाहार-दानक पूजा-विधानक्कमागे समस्त-गुण-मणि-गणविराजमानेयरम्प श्रीमतु चट्टल देवियरुमन्तु तम्म नाल्वरुमि? कमळभद्र-देवर काल कर्चि धारा-पूर्वकमासम्बन्विय समुदाय-मुख्यमागे भुजबळशान्तरदेवं कोट्ट ग्रामङ्गल (जैसाकि कहा गया है) मत्तमातननुज नन्निशान्तर-देवं सुखटिं राज्य गेय्युत्तमि? पोम्बुर्च-नाडोळगण हादिगारु अदर काठहळि हल्लवनहळ्ळियु विडेयुम कोट्ट अन्तातन नम्म विक्रम शान्तर-देव राज्यं गेयुत्तमि? पोम्बुर्च-नाडोळगण हालन्दूरु कल्लूरु-नाडोळ गण केरेगोड समीपद मडम्बछियुम कोट्टरिन्ती-बसदिय वृत्ति-एल्लवक देवि-देरे अडे-गर्बु काणिके सेसे बिर्दु वीय-मोदलागे कुमार-गद्याण किरुदेरे किरु-कुलायं साम्य सलगे मोदलागि पे तेरेगळेम्ब सर्व-बाधापरिहारवं माडिदर । (यहाँ सीमाएँ तथा हमेगाके अन्तिम वाक्यावयव भाते है)।