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जैन - शिलालेख संग्रह'
( पीछे )••••••शान्ति- देवर् श्रीमत् सो [सेवू ]र... नकर-समूह तम्म परोक्ष - विनयं गेदु निषिढिगे मङ्गलमहा
गुरु
[..... विनयादित्य.. पोयसळके गुरु ....... • ( उक्त मितिको ) शान्तिदेवने, अपने धर्मके फल स्वरूप निर्वाणको प्राप्त किया । नगर (व्यापारी संघ ) के लोगोंने अपने गुरु शान्ति - देवकी मृत्युके उपलक्ष्य में यह स्मारक खडा किया । ]
[ EC, VI, Mudgere tl, n 17 ] २०१
:-भन्न
अङ्गडि - संस्कृत तथा कन्नड़-भ १०६३ ई० ]
[ शक ९८४ = १०२
[ अगडि ( गोणीची परगना ) में, वसदिके पासके पाषाणपर ]
तन्त्र-प
...व्वरसिय
"साम्पराय
( ७ पक्तियों में दानको चर्चा है ) पोय्सकन विद्यावन्त पोयसळाचारि आतन मग माणिक पोय्सुळाचारि आत माडिद वसदि उठि वक्ति, पिडिवर चट्ट ( पीछे ) इन्तिनितु भूमीयुम को शक वर्ष ९८४ नेय शुभकृत् -संवत्सरद फाल्गुन-सुद्ध-पञ्चमी - बुधवारं रोहिणी नक्षत्रदन्दु प्रतिठेगेदु पूजेय माडि तिरु-नन्दीश्वरदन्दु दान - माडेयु पोसळन गुरुगळ् मुल्लूर श्री-गुणसेन - पण्डित - देवर्गे धारा- पूर्व्वकटिं स्थानम को ॥
श्री-वनितेगे धरणिगे बाग्-देविगे रुग्मिणिगे रतिगे रम्भगे सीता - 1 देविगे कोन्तिगे परियल - । देविविल्लिलि गुणके वप्परुमुण्टे || श्रीमदभिमानपिण्डः । पर-गण्ड-प्रलय-काल-यम-दण्डः ।
सद्गुणरत्नकरण्डः । स जयतु भुवि मलेपरोल् गण्डः ॥ रक्कस-चोय्सलनेम्वा- | र्-अक्करव वरेदु पटमनेत्तिदडिदिरोळ् ।
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