SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ जैन-शिलालेख-संग्रह श्रीमत्-पट्टण-खामि-नोकय-सेट्टि स (श) कचर्ष ९८४ शुभकृतसंवत्सरद कार्तिक सुद्ध ५ आदित्यवारदन्दु तन माडिसिद पट्टण-खामि-जिनालयक्के वीर-सान्तर-देवङ्गे ( यहाँ दानकी विस्तृत चर्चा भाती है ) सर्व-बाधा-परिहार-मागि माडि तन्न सहधम्मिंगळ् सकलचन्द्र-पण्डितदेवगर्गे कोट्टम् ( यहाँ वे ही हमेशाके अन्तिम वाक्याव. यव भाते है)। इष्टनोर्बनधिदेवतेगेन्दोसेदित्तुदम् । दुष्टनोर्बनदर फलव सले तिन्दवम् । सिट्टि-मेले परमात्मने बन्देडेगोवदम् । कट्टिकोण्ड विदिरन्ते कुल-क्षयमागुगुम् ।। (वे ही अन्तिम श्लोक ।) अक्कर | ईवरेन्दत्ति पल्लिरिदेरदप "तागि वेळ्दपर लेजेगेटु कावरेन्टल 'सरणेन्दु वन्दपर् त्तावति मरेवकुं वाल्वेमेन्दु साम-बङ्गदा मरेवा बन्..... विडियु निद्दे पट्टियदन्दु जीवम्जीवके तूकक्के बारडे, किळ्व१ बरवेके वीर देव ॥ धुरदोळसि-लतेयनुच्चिदड् । अरि नृप-युवतियर मुगुळ कङ्कणदा-कील । तरतरदिनुम्चिदवु निज-। कर-खळगमवर्के कीले शान्तिर-नृपति ।। वीरुगन दोरेगे दोरे पेर-। रारु बन्दवरी-कृत-युग त्रेते द्वा-। पर कलि-युगदोळगण। वीररुदार प्रतापिगाळ् धर्म-परर ॥
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy