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हुम्मचका लेख
२३७ ....."मडिने रामके ढिये हुए इस ताम्बेके शासनपर दानके अक्षर लिखे और बसदिके पानीकी राहके फाटक्पर मूर्तियों और अक्षर खोदे । इस बसदिको नन्नि-चगाळ-देवने फिरसे बनवाया।]
[EC, IV, Yedotore tl , n° 25 ]
हुम्मच-कन्नड़ [शक ९८४=१०६२ ई.] [सूळे वस्तिके सामनेके पाषाणपर] स्वस्ति समस्त-सुरासुरमस्तक-मुक्ताशु-जाल-जल-धौत-पदम् । प्रस्तुत-जिनेन्द्र-शासन
मस्तु चिरं भद्रमखिल-भव्य-जनानाम् ॥ स्वस्ति श्री पृथ्वी-वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम-भट्टारकं सत्याश्रय-कुळ-तिलक चालुक्याभरण श्रीमत् त्रैलोक्यमल्ल-देवरराज्य सलुत्तमिरे ॥ स्वस्ति समधिगत-पञ्च-महाशब्द महामण्डलेश्वरनुत्तर-मधुराधीश्वर पट्टि-पोम्बुर्च-पुर-बरेश्वरं मोम-वा-ललाम पद्मावती-लब्ध-वरप्रसादासादित-विपुल-तुलापुरुप-महादान-हिरण्यगर्भ-त्रयाधिक दान वानरध्वज-विराजित-राजमानं मृगराज-लाञ्छन-विराजितान्योत्पन्न बहु-कळाकीर्ण शान्तरादित्य सकळ-जन-स्तुल्य कीर्ति-नारायण सौर्य-पारायण जिन-पादाराधक रिपु-बल-साधक नीति-शास्त्रज्ञ विरुद-सर्वज्ञ श्रीमत्त्रैलोक्यमल्ल-वीर-शान्तर-देवं सान्तलिगे-सायिरमुमनेकच्छत्र-च्छायेयिन्दमाळुत्तमिरे ॥ तत्पाद-पद्मोपजीवि वस्त्यनेकगुण-गणाभिमण्डन नखर-मुख-मण्डन शान्तर-राज्या-भ्युदय-कारणं कलि-युग-दोस(ष)निवारण आहाराभय-भैषज्य-शास्त्र-दान-कानीन विशद-यशो-निधानरप्प