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जैन-शिलालेख संग्रह ७ गणिशेखरमरुपोचुरियन्न नामत्ताल वामनिलै निरकुड्८ कलिञ्चिङ्गु नीमिर वैय्गैमलैकु नीडुळि इरुमरुद्धु नेल विलेय९ कण्डोन् कुलै पुरियु पडै अरचर कोण्डाडु पादन गुणवीरमा
मुनिवन् १० कुळिर वैयौक्कोवेय् [1]
[ यह अभिलेख कोविराजाराजकेसरिवर्मन्, उर्फ राजराज-देवके २१ वें वर्ष अभिलिखित है, तथा पोन्नि, अर्थात्, कावेरी नदीके स्वामी 'शोरन् अरमोरी' के इक्कीसवें वर्ष में (शब्दोंमे)।
लेख बताता है कि किसी गुणवीरमामुनिवन्ने एक नहर या मोरी (Sluice ) गणिशेखर-मरु पोर्चुरियन् नामके उपाध्यायके नामसे बन. वाई थी। तिरुमलै चट्टानका उल्लेख "धैरगैमलै" नामसे है।] [South Indian Ias , I, n° 66 (p. 94-95), t & tr.]
१७२ बेलूरु-कन्नड-भन्न
[शक ९४४=१०२२ ई.] [बेलूरु (कोत्तत्ति परगने )में, तालाबपर दुर्गा देवीके पीछेके पाषाणपर]
खस्ति समस्त-रिपु-नृप-कुम्मि-कुम्भ-दळन-पश्चास्य समुदित-श्रीम"" क-विमुक्त-चोळ-भूपाळ"लित "जित-वीर-लक्ष्मी आश्रित-भक्त-मलापकर्षण भूमिसञ्चरण जय-मूल-स्तम्भं श्रीमद् अ.."गङ्गमण्डलेश्वर प्रभुपद्म-युग्माशोक-भोगिकाश्रित-भ्रमद्-भ्रमर जित-रिपु संसित-समर-प्रताप राज्य-भार-धुरन्धरं अमात्य-समिति-विराजमानम् सत्यत्व-नाभि-कानीनम् समर-जित-भूप-जीव-प्रदनु अतिपूताचरणम् रिपु-खरकिरणम्......" तिगाञ्जनेयं सौच-गाङ्गेयं शरणागत-बज्र-पञ्जरम् रिपु-कञ्ज-कुञ्जरम् तन-रक्षामणि मन्त्री-चिन्तामणि विनेय-विळासम् श्रीमत्-पेग्गैडे-हासम्