________________
૨૮૮
जैन-शिलालेख संग्रह यक पुत्तुणक्केय्य "इकण्डुग-वित्तवुड कोट्टल् कुन्दय्य कोन्दरोळ्... ... येम्बुदु मणिकण्डग .... दृ पोरवक्कनु सेम्बक्कनु पाजियकन केळदिये पुठियण्णवी-धर्म नडयिसु "री-नाडरसं रणविक्रम पाळियकन वसदिगे बदरीनाडानन्दु पनेरड बण्ण तम्म वाणसिगेय बयल को ईधर्मम श्रीसामियव्ये गेल्लुगन मुनमे सालिय् .."र ने डि पाळियक्कन बसदिगित्तळ गेल्लुगन धर्म कावोनु नडयिसुबोनु... · गळ महा श्री॥ श्री-माधवचन्द्रविद्य-देवर शिष्यरप्प नागचन्द्र-देवर पुत्र मादेयसेनबोव "स पुन-प्रतिष्ठेय माडिढनु मङ्गळ महा श्री श्री-वीतरा[ग] ॥
[स्वस्ति । जिस समय अनवद्यदर्शन, महोत्र, प्रतापसम्पन्न, परचक्रगण्ड, • • • ......शासन कर रहा था,-(उक्त मितिको), प्रत्यक्षरूपसे तोलापुरुष-शान्तरकी पत्नी पालियने, अपनी माताकी मृत्युपर, पालियक्क बसदि नामकी एक पाषाण-बसाद खडी की और बहुतसे दान इसके लिये किये गये।
[EC, VIII, Nagar ti, n° 45]
१४६ कुम्ती-संस्कृत तथा कन्नड-भन्न । [ वर्ष साधारण ९५० ई. ( लु० राइस)] [ कुम्सीमें, किलेके भण्डार-गृहके पासके पापाणपर] श्रीमत्परमगभीरस्याहादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासनम् ।। तनगेन्दु ...... . ....."नन्- । द''पुत्रगति-भीतिय... "मतावष्टम्भदि भाडि को-1 डनो जाम "सोम्युवेत्त पोळलोल कुम्वशिकेयोळ माडिदम् । जिन-गेहङ्गळवाशेयिं पलवु... ....."