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जैन-शिलालेख-संग्रह
१३२ हुम्मच-कन्नड़ ।
शक ८१९८९७ ई० [हुम्मचसे गुड्डद वस्तिकी बाहरी दीवालपर] खस्त्यनवद्य-दर्शन महोग्र-कुल-तिलक नय-प्रताप-सम्पन्न पर-चक्रगण्ड गोण्ड बल्लात कार्मुक-राम श्रीमत्-तोलापुरुप-विक्रमादित्यशान्तरं शक-वर्य येण्टनूर यिप्पत्तनेय वर्ष प्रवर्तिसुत्तिरे श्रीमत्-कोण्डकुन्दान्बयढ मोनि-सिद्धान्तद-च (भ) टारग्गै कल्ल बसदिय माडिसियदक्के पोम्बुळचट (यहाँ टानकी विशेप चर्चा तथा वे ही अन्तिम वाक्यावयव आते है)।
इष्टनोनधिदेवतेगेन्दोसेटित्तुदम् । दुष्टनोवनदर फलच तवे तिम्बवम् । सिष्टिमेले परमात्मने बन्द..
कप्टव् विदिरन्ते कुल-क्षय मागुगुम् ॥ [स्वस्ति । जिनका दर्शन (मत) अनवद्य (निर्दोष) है, महोग्र-कुलतिलक, न्याय करनेमे प्रसिद्ध, विदेशी राज्योके शूरवीरोको पकडनेमे चतुर, धनुपको पकडनेवाले रामकी तरह दिखनेवाले, तोलापुरुप विक्रमादित्यगान्तरने, (उक्त मितिको), कोण्डकुन्ठान्वयके मोनि-सिद्वान्त-भट्टारके लिये एक पापाणकी वसदि' वनवाई, और इसके लिये ( उक) दान किये । गापात्मक श्लोक ।]
[EC, VIII, Nagar t}, n° 60]
१३३ वल्लीमलै (जिला नार्थ आर्कट)-कन्नड ।
[विना काल-निर्देशका] १ स्वस्ति श्री [:] [1] शिवमार-आत्मजा (ज)-वरना प्रवरश्रीपुरुषनाम