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विलियूरका लेख न्तुनूरॉम्बत्तनेय वर्ष 'प्रवर्तिसुत्तिरे स्वस्ति सत्यवाक्यकोगुणिवर्मधर्म-महाराजाधिराज कुवलाल-पुरवरेश्वर नन्दगिरि-नाथ श्रीमत्पेर्मनडिय राज्याभिषेक गेय्द पडि नेण्टनेय वर्पदन्दु पा (फा) ल्गुणमासद श्री-पञ्चमे यन्दु शिवणन्दि-सिद्धान्तद-भटारर शिष्यर् स्सर्व (व) णन्दि-देवगै पेण्णे-गडङ्गद सत्यवाक्य-जिनालय के पेड्डोरैगरेय बिळियूर्-प्पन्निपळ्ळियुम सर्व-पाद-परिहार पेर्मेनडि कोट्टो तोम् भट्टरु-सासिरु अय्-सामन्तरु वेड्डोरेगरेय एल्पटिम्बरु एन्तोक्कलु इटक्के साक्षी मले-सासिर अय्मुरुम (अयनूरु) अय्-ढामरिंगरु इदक्के कापु इदनळ्ळिदो वारणासियुम सासिद्धार्चरुम सासिर कविले युमननिळदोम् पञ्चमहापातकनकु सेदोजन लिखित्त (त) वेळियूर ऐम्बटुगद्याण पोन्नू एण्टु-नूरु-वट्टमु तेरुयोम् ।
[यह दान शकवर्ष ८०९ के चालू रहते हुए फाल्गुन महीनेके पाँचवें दिन, जिस वर्ष पेर्मनडिके राज्याभिषेकका १८ वा वर्ष चालू था, उन्होने जीवनन्दि सिद्धान्त- भट्टारके शिष्य सर्वनन्दि-देवको पेडोरेंगरेके अन्तर्गत विलियूरके १२ छोटे गाँव, हमेशाके लिये लगान वगैर. से मुक्त करके, दिये । यह दान पेन्ने कडङ्गके सत्यवाक्य जिनचैत्यालयके लिये दिया गया था। ऐसा दीखता है कि 'सत्यवाक्य कोङ्गुणिवर्म-धर्म-महाराजाधिराज' पेर्मनडिको ही उपाधि या विरुद है। ये दोनो एक ही व्यक्ति है, अलग-अलग नहीं। ये कुवलाल-पुरके प्रभु तथा नन्दगिरिके नाथ थे।
आगे लेखमे साक्षियो तथा सरक्षकोका परिचय है । इस दानको भङ्ग करनेवालेको अमुक-अमुक पापका भागी बताया है। यह लेख सेदोजका
लिखा हुआ है। ।
विलियूर की आमदनी ८० गद्याण सोना और ८०० (नाप) तन्दुल (चावल) की है।]
[EC, 1, coorg ins , n° 2]