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जैन-शिलालेख-संग्रह
११५ पञ्चपाण्डवमलै-(आर्कटके निकट)-तामिल
--[ ? - १ नन्दिप्पोत्तरश[ ] कु अय् [म् ] वदावदु नाग[ण]न्दि
गुर [व] २. [ इरु ] क पोञिय [क] किय[]र पडिम कोमुधिट्टा [] ३. पुगिाळालैमंगल]त्तु मरुत्तुवर मगञ् नारण
अनुवाद-नन्दिप्पोत्तरशके ५ वे (वर्प) मे,-पुगळालैमगलंके मरुन्तुवरके पुत्र नारणम् (नारायण) ने नागणन्दि (नागनन्दि) गुरुकी मूर्तिके साथ-साथ पोज्जियक्कियार्की मूर्ति खुदवाई।
[EI, IV, no 14, A ] ११६ अनहिलवाड-पाटन-संस्कृत ।
(सवत् ८०२- ई० स० ७४५) यह शिलालेख श्वेताम्बर सम्प्रदायका है। [J Bargess and H Cousens, Antiquity of North Gajerat (A SI, XXXII)]
श्रवणबेल्गोला (विना कालका)-संस्कृत । [देखो "जैन शिलालेख-सग्रह प्रथम भाग"।]
नन्दी (गोपीनाथ पर्वत)-सस्कृत । विना कालनिर्देशका संभवत ७५० ई० (लु. राइस) [नन्दीमे, गोपीनाथ पहाडीके ऊपर गोपालस्वामी मन्दिरके पासकी चट्टानपर