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जैन साहित्य संशोधक फामन्याफे नीतिसारफे बाद जहाँ तक दम आनते हैं, गह नीतिषाक्यामृत अन्य ही ऐसा बना है, जो उस दोनों प्रन्भोंकी श्रेणीमें रक्खा जा सकता है और जिसमें शुद्ध राजनीतिफी चर्चा की गई है। इसका अध्ययन भी फौटिलीय अर्थशास्त्र के समझनमें बड़ी भारी सहायता देता है। ___ नोतिषाक्यामृतकं कर्ताने भी अपने द्वितीय ग्रन्थ ( यशास्तिक) में गुरु,शुक्र,विशालाक्ष, भारद्वाजके नीतिशास्त्रोका उल्लेख किया है। मनुके भी बीसो लोकोंको उद्धृत किया है +1 नीतियाक्यामृतमें विष्णुगुप्त या चाणक्यका और उनके अपशालका उलेख है। बृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज, धादिके अभिप्रायोंको भी उन्होंने नीतिवाक्यामृतमें संग्रह किया है जिसका स्पष्टीकरण नांतीवाफ्यामृतको इस संस्कृत टोफासे होता है। स्मृतिकारोसे भी वे अच्छी तरह परिचित मालूम होते हैं । इससे हम कह सकते हैं कि नीतीवाफ्यामृतके कर्ता पूर्वोक्त राजनीतिके साहित्यस यथेष्ट परिचित थे । बहुत संभव है कि उनके समयमें उपक सबका सब साहित्य नहीं तो उसका अधिकांश उपलब्ध होगा। कमसे कम पूर्वाफ आचायोंके प्रन्यो सार या संग्रह भादि अवश्य मिलते होगे।
इन सब बातोंसे और नातिवाक्यामृतको अच्छी तरह पड़नसे हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि नातिवाक्यामृत प्राचीन नीतिसाहित्यका सारभूत अमृत है । दूसरे शब्दोंमें यह उन सबके भाधारसे और कविको विलक्षण प्रतिभास प्रसूत हुआ संग्रह प्रन्य है। जिस तरह कामन्दकने चाणक्यक अर्थशास्त्र के आधारसे संक्षेपमें अपने नातिसारका निर्माण किया है, उसी प्रकार सोमदेवमारने उनके समयमें जितना नीतिसाहित्य प्राप्त था उसके आधारसे यह नीतिवाक्यामृत निर्माण किया है। दोनोंमें अन्तर यह है कि नातिसार श्लोकबद्ध है और फेयल अर्थशास्त्र के आधारसे लिखा गया है, परन्तु नातेवाल्यामृत गधमें है और अनेकानेक अन्धोके आधारसे निर्माण हुआ है, यद्यपि अर्थशास्त्रको भी इसमें यपेष्ट सहायता ली गई है।
फौटिलीय अर्थशास्त्रको भूमिफामें श्रीयुत शामशास्त्रीने लिखा है कि, “यच यशोधरमहाराजसमकालेन सोमदेवसूरिणा नीतिवाक्यामृतं नाम नीतिशास्त्र विरचितं तदपि कामन्दकोयामिव कौटिलीयार्थशास्त्रोदय सक्षिप्य संगृहीतामात सदप्रन्भपदयाक्यशैलीपरीक्षायां निस्संशयं ज्ञायते ।" अर्थात् यशोधर महाराजके समकालिक सोमदेवसूारने जो' नीतिपाक्यामृत' नामका अन्य लिखा है उसके पद और वाक्योंकी शलीकी परीक्षासे यह निस्सन्देह कहा जा सकता है कि वह भी कामन्दकके नीतिसारके समान कौटिलीय अर्थशास्त्रसे ही संक्षिप्त करके लिखा गया है परन्तु हमारी समझमें ___ " न्यायादवसरमलभमानस्य चिरसेवकसमाजस्य विज्ञप्तय इव नर्मसचिवोक्तयः प्रतिपनकामचारच्यवहारेषु स्वेरविहारेषु मम गुरुशुकविशालाक्षपरीक्षितपराशरभीमभीष्मभारद्वाजादिप्रणीतनीतिशास्त्रश्रवणसनाथं श्रुतपथमभजन्त।"यशस्तिलकचम्पू , आश्वास २, पृ० २३६ ।
+"दूपितोऽपि चरेद्धर्म यत्र तत्राश्रमे रतः। समं सवपु भूतेपुन लिङ्गं धर्मकारणम् ॥ ...इति कथमिदमाह वैवस्वतो मनुः। "-यशस्तिलक आ० ४, पृष्ठ १०० । यह श्लोक मनुस्मृति अ० ६ का ६६ चौ श्लोक है। इसके सिवाय यशस्तिलक आश्वास ४, पृ. ९०-९१-११६ (प्रोक्षितं भक्षयेत् ), ११७ (फ्रीत्वा स्वयं), १२७ (सभी ग्लोक), १४९ (सभीग्लोक), २८७ (अधीत्य ) के श्लोक भी मनुस्मृतिम ज्योंके त्यों मिलते हैं । यद्यपि वहाँ यह नहीं लिखा है कि ये मनुके हैं। उक्तं च'रूपमें ही दिये हैं।
४ नीतिवाक्यामृत पृष्ठ०३६ सुत्र ९, पृ.१०७ सुत्र ४, पृ. १७१ सूत्र १४ आदि।
+“विप्रकीताबूढापि पुनर्विवाहदाक्षामईतीति स्मृतिकाराः"-नीवा-पृ०३७७,२०२७, "श्रुतेःस्मृतेबाह्यवाध्यतरे;" यशस्तिलक आ०४, पृ. १०५, " श्रुतिस्मृतीभ्यामतीव बाह्ये"-यशस्तिलक आ०४, पृ० १११; "तथा चस्मृतिः" पृ.१६और " इति स्मृतिकारकीर्तितमप्रमाणीकृत्य"पृ०२८७ ।
यशस्तिलक आ. ४ पृ० १०० में नीतिकार भारद्वाजके पाइगुण्य प्रस्तावके दो श्लोक और विशालाक्षक कुछ वाक्य दिये हैं। ये विशालाक्ष संभवतः वे ही नीतिकार हैं जिनका उल्लेख अर्थशास्त्र और नीतिसारमें किया गया है।
शास्त्रीजीका यह बड़ा भारी भ्रम है, जो सोमदेवसरिको वे यशोधर महाराजके समकालिक समझते हैं। यशोधर अनोंके एक पुराणपुरुप हैं। इनका चरित्न सोमदेवसे भी पहले पुप्पदन्त, बच्छराय आदि कवियोंने लिखा है। पुष्पदन्तका समय शकसंवद ६०६ के लगभग है । और बच्चराय पुष्पदन्तसे भी पहले हुए हैं।