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जैन साहित्य संशोधक
- [भाग १ पाळाओए तेमनी सर्वोत्कृष्ट ब्याक्त माटे पसंद कर्यो धर्मप्रवर्तकोने देवरूपे मानता-पूजना होवा छे. उदाहरण तरीके, तीर्थकरशब्दनो व्युत्पत्त्यर्थ जोईए. आथी निश्चितरूपे एम केम कहीं शकाय के धर्मनो स्थापनार एटले धर्मप्रवर्तक एवो थाय छे. जैनोए पोतानी आ वायत विषयक आचार-विचारी अने तदनुसार जैन तथा अन्य संप्रदायोए तेज बौद्धो पातेथीज लीधा हता पण वीजा पासेथी अर्थमां तेनो प्रयोग करेलो छे परंतु बौद्धोए तेने ते नहीं? आथी विरुद्ध एम तो कहेवाने कारण छे के अर्थमां न वापरतां प्रतिस्पर्धी या पाखंडी मतना बद्धना उपदेशमां एवं काई पण तत्त्व जोवामां आ. आचार्यना अर्थमां वापयर्यो छे, अने तेम करी तेमणे, वतुं नथी जेथी तेमना अनुयायियोने वुद्धना मंदिजेओ ते शब्दमे मानसूचक अर्थमां वापरता हता रो वांधवा माटे अगर तेमनी मूर्ति स्थापित. तेमना तरफ पोतानो द्वेप व्यक्त को छे. आवीरीते करवा माटे प्रोत्साहन मळी शके. तेमना उपदेशोधीजा दाखलामां, बुद्ध शब्द सामान्य रीते, मुक्त मां एवी तो घणीक यावतो अवश्य नजरे पडे छे अर्थात् बंधरहित थएला आत्माना अर्थमां वपराय के जे आवा प्रकारनी भक्ति-पूजा-अचानी छे: अने एज अर्थमां जैन ग्रंथोमां ते शब्दनो प्रयोग (अर्थात मूर्ति पूजानी) पद्धति तरफ विरुद्धता धतो अद्यापि दृष्टिगोचर थाय छे. परंतु बौद्ध ग्रं- बतावती होय छे. परंतु जैनाना विषयमा आवू काई धोमां ए शब्द खास तेमना धर्मप्रवर्तकना विरुद कारण बतावी शकाय तेम नथी. तेओ जो पोता सपेरुद्धथएलो छ. आ हकीकत उपरथीए अनमा- नातीकर महावीरने देवस्वरूपे पजे तो त
याए अनुमा- ना तीर्थंकर महावीरने देवस्वरूपे पूजे तो तेमां ते. न सहज थई शके छ के जे समयमा बौद्धोनी सां- ओ पोताना सिद्धान्त विरुद्ध वर्तन करे छे, एम प्रदायिक परिभाषा निर्णीत थई ते वखते तेओ कही शकाय तेम नथी. खरी रीते आ विषयमा प्रकटलपे जैनोना प्रतिपक्षिमओ लेखाता होवा जो मार पोतानुं स्वतंत्र मानवें तो एवं छे के । ईए. आथी उलहं, एटले जैनोए जे वखते पोतानी असली बौद्धधर्म या जैनधर्मने मूर्तिपूजा साथै परिभाषा स्थिर करी ते वखते तेओ यौद्धोना प्रति- कांड संबंध नहीं होवो जोईए.कारण के मूर्तिपूजानी पक्षीरूपे प्रसिद्ध नहीं थएला होवा जोईए. उत्पत्ति निर्ग्रन्थो द्वारा नहीं पण गृहस्थो द्वारा थए
बुद्धधर्मनी पूर्वकालिकताना पक्षमा, प्रो. लेसनबी- ला छे. तेनी उत्पत्तिनुं कारण पण ए लागे छे के जी दलील एरजु करे छे के, ए वन्नेधर्मोमांमृत्युशील ज्यारे भारतना धर्मविषयक विकासक्रममां भाक्त मनुष्योनी अर्थात् मनुष्यरूप धर्मप्रवर्तकोनी देव एक मोक्षना मुख्य साधन तरीके मनावा लागी तरीके उपासना करवामां आवे छे, तथा तेमनी त्यारे लोकोने पोताना प्राचीन अणघड (जंगली) मूर्तिओने मंदिरोमां पूजवामां आवे छे, इत्यादि. देवी-देवताओनी प्रचलित पूजाथी असंतोष रहेवा
चौद्धधम अने जैनधर्म सिवाय एवो अन्य कोई लाग्यो अने तेथी तेमणे केटलाक उच्च प्रतिना पण संप्रदाय, के जेनो संस्थापक, महावीर उपास्योनी पूजा करवानी प्रथा शरु करी. खरी वृद्धनी माफक, पोताने सर्वज्ञ अने सर्वथा कृतकृत्य
वस्तुस्थिति आवी होपाधी चैत्यस्थापन तथा मूर्तिकरडावतो हतो,आपणी प्रत्यक्ष जाणमां आती पूजामा बौद्धोने पुरोगामी अने जैनोने तमना अनुशके तेटला समय सुधी टंकी शक्यो नयी पी कर्ताओ न मानता, मारा विचार प्रमाणे, आ बन्ने आपणने ए क्न्ने धर्मों सिवाय आ वावत संप्रदायोए स्वतंत्र रीतेज हिंदु लोकोना धार्मिक प्रत्यक्ष उदाहरण मळी शके तेम नथी. तो पण, जे
" विकासना शाश्वत अने अनिवार्य प्रभावने वशथई यीजा जुना संप्रदायोना विपयमां आपणने आ प्रथा स्वीकारी हती, एम मानवू जोईए. . ज्ञान मळेलं छे ते उपरथी एम अनुमान करी शकाल आ बन्ने संप्रदायो वञ्चेनी समानतानी त्रीजी य छे के घणा भागे ते सघळा संप्रदायो, अने तेम दलील, ए वन्नेमा सरखी रीते मळी आवता अहिं. नहीं तो छेवटे तेमांना केटलाक तो अवश्यमेव, साना सिद्धान्त विषयनी छे, आ दलीलनी चर्चा दौद्धो भने जैनोनी माफक पोताना तीर्थकरो- भागळ उपर करवामां आवशे तेथी अही हुँ प्रो.