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डॉ. हर्मन जैकोबीनी जैन सूत्रांनी प्रस्तावना
अंक २]
user द्दश: क्रेटलीक नवी हकीकतों उपजा घी काढवी पडी हशे अने तेम करी तेमणे पोताना विरोधियोना जेवाज सर्वने प्रामाणिक लागे तेवा ले श्री यनाच्या शे. परंतु आ वधी अयुक्त कल्पनाओ छे. महावीरना संबंधर्मा तथा तत्कालीन परिस्थिति अने लोकोना विषयमां उपलब्ध थती जैन तेमज afa परंपराओ, परस्पर जे आटली सुंदररीते म ळती होई, एक बीजीने सुधारनारी अने पूर्ण कर नारी देखाय छे, ते बधी बावतोनो खरो खुलासा अमे बतावेली उपर्युक्त रीतेज थई शके है, अने मात्र एज के पन्ने धर्मानी परंपराओ, मुख्यरीते एक वीजाधी स्वतंत्र छ भने जे वखते एपरंपराओनुं स्वरूप निश्चित थयुं हतुं ते चखते मनातां ऐतिहासिक सत्योज तमां नोघालां है.
हवे आपणे, जैनधर्मना विषयमा लखनारा विछानोने, ए धर्म अने बौद्धधर्म वच्चे जणाई आवेला सायोनो विचार करीए के जे साहइयोए ए विद्यानोना, आ यन्त्रे धर्माना पारस्परिक संबंध विषयक अभिप्राय उपर घणी मोटी असर करी है.
प्रो. लेसने,' ए वन्ने धर्मोनी एकरूपताना हेतुमां चार मुद्दाम र करेला हे अने ते द्वारा तेमणे जैनधर्म बौद्ध धर्मनी एक शाखा है एम सावीत करवानो प्रयत्न कर्यो छे. अहीं आपणे ते चारे मुद्दाओन अनुक्रमे विचार करीशुं.
प्रो. लेसननी पहेली दलील एछे के बने धर्माना प्रवर्तकोने जिन, अर्हत, महावीर, सर्वेश, सुगत, तथागत, सिद्ध, युद्ध, संबुद्ध, परिनिर्वृत, मुक्त इत्यादि प्रकारां एकज सरखां विरुदो या विशे. पणी लगाडेलां जोवामां आवे छे. तेथी मूळमां ते बने एकज होवा जोईए इत्यादि.
आधा शब्द अल्प या अधिक प्रमाणमां वने धर्माना श्रीमां जीवामां आवे छे, एमां संशय नथी. परंतु तेमां खास ध्यान खेचवा लायक तफावत रहेलो छे! अने ते एछे के जिन अने कदाचित् श्रमण
शब्दो याद करतां यारे एक धर्म अमुक विरुदोनो विशेष उपयोग करे हत्यारे तेनो प्रतिस्पर्धा (थीजो)
१. Indische Alterthumskunde IV. p.
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धर्म बीजा विरुदोनो प्रयोग वधारे पसंद करे छे. उदाहरण तरीके, साधारण रीने ज्यारे बुद्ध, तथागत, सुगत अने संबुद्ध या विशेषणो शाक्यमुनिने हमेशां लगाडवामां आवेलां होय छे, त्यारे महा. वीर माटे तेमनो प्रयोगं क्वात् ज थपको होय छे. वर्धमाननां विरुदो तरीके वीर अने महावीर शब्दनो ज हमेशां प्रयोग करवामां आव्यो छे. मा करतां पण अधिक भेद सूचक एक विशेषण तीथेकर छे. आ शब्दनो अर्थ जैन ग्रंथोमां 'धर्मप्रवर्त क' एवो थाय छे. परंतु बौद्ध ग्रंथोमां ते शब्द पासंडीमतना संस्थापकना अर्थमा परापलो छ. थ प्रमाणे, आ यने संप्रदायोप उक्त विशेषणसं. ग्रहमांथी अमुक अमुक विशेषणाने जे खास रीते पसंद करी लीलां जोवामां आवे छे ते उपरथी वातविक्रमां आपणने फयुं अनुमान करवानुं कारण मळे छे ? शुं आपणे एम मानवु के जैनोए ना शब्दो बाँडो पासेश्री लीधा है ? हुं एम नथी मानी शकतो. कारण ए छे के जो आ शब्दो एक चखत अमुक विरुदरूपेज नक्की थई चुक्या होय अथवा तेनी व्युत्पत्ति उपरथी निकळता अर्थ करतां कोई खास अर्थमां रूढ थई गया होय तो ते शब्दोनो या तो तेज रीते स्वीकार थई शके अगर तो अस्वीकार थई शके. परंतु जे शब्द एक वलत अमुक खास अर्थ सुचक बनी गयो होय, तेने, वौद्धो पासेधी नारा जैनोप, फरी तेना असल अर्थमां चापर्यो हतो एम मानवुं तद्दन अशक्य छे. आ यावतनो स्वाभाविक खुलासा तो एज थई शके के दरेक कालni as मानसूचक विशेषणो तथा नामो प्रचलित होय छे अने ते विशिष्ट गुणधारी पुरुषोने लगाडवामां आवे के. आi विशेषण तथा गुणवाचक नामी ते बलते पण प्रचलित छतां आ शब्दोनो वधा संप्रदायो ना मूळ अर्थमां, विशेपणरूपे प्रयोग करता हता. आ शब्दोमांना केटलाक शब्दोने, तेमां रहेकी अर्थ शक्ति अनुसार बधा संप्रदायोग पोताना धर्मप्रवर्तको माटे पसंद कर्या हता अने आ पसंदगीमां तेश्रो शब्दनी अर्थशक्ति तरफ तो जोऩाज हता! परंतु साथे साथे तेओ ए बाबत तरफ पण जोता हवा कथा शब्दने पोताना कया प्रतिस्पर्धी मत