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अंक २) जेसलमेरकं पटवोंके संघका वर्णन
१०७ अनुभव करता हुआ संघ फिर विपाशाके तट पर आचार्य श्रीजिनेश्वरसूरिकी प्रतिष्टित की हुई शाधहुंचा। उसे सुखपूर्वक ऊतर कर, अनेक बडे बडे न्तिजिनकी प्रतिमा का दर्शन किया। तीन चार गाँवोंके बीच होताहुमा, और तत्तद गाँवों के लोको प्रदक्षिणा दे कर, नाना प्रकारके स्तुति-स्तोत्रों और स्वामियों को मिलता हुआ, क्रम से पाताल- द्वारा अत्यंत आनन्दपूर्वक प्रभुकी पर्यपासना की। गंगा के तट ऊपर पहुंचा। उसे भी निरायास पार इस प्रकार संवत् १४८४ वर्षके ज्येष्ठ सुदि पंचमी. कर क्रम से आगे बढ़ते हुए और पहाडॉ की चो- के दिन, अपनी चिरकाल की दर्शनोत्कण्टाको टियों को पैरों नीचे कुचलते हुए संघ ने दूरसे पूर्ण कर फरीदपुरका संघ कृतकृत्य हुआ । शान्तिसोनके कलशवाले प्रासादीको पंक्तिवाला नग- जिन के दर्शन कर संघ फिर नरेन्द्र रूपचन्द्र के रकोट्ट, कि जिसका दूसरा नाम मुशर्मपुर है, देवा। बनाये हुए मंदिर में गया और उस में विराजित उसे देख कर संघ-जनोंने तीर्थक प्रथम-दर्शन- सुवर्णमय श्रीमहावीरजिन थिबको पूर्ववत् वन्द. से उत्पन्न होने वाले आनंदानुसार, दान धर्मादि न-नमन कर, देवल के दिखाये हुए मार्गसे युगासुकृत्यों द्वारा अपनी तीर्थभक्ति प्रकट की। नगर- दिजिनके तीसरे मंदिर में गया । इस मंदिरमें भीकोट्टकं नीचे याणगंगा नदी बहती हैं जिसे ऊतर उसी तरह परमात्माकी उपासना-स्तवना कर कर संघ गाँवम जानकी तैयारी कर रहा था कि निज जन्म को सफल किया। इतने में उसका आगमन सुन कर गाँवका जैनस- (विज्ञनित्रिवोण, प्रस्तावना, पृ०३७-३९) मुदाय, सुन्दर वस्त्राभूषण पहन कर, स्वागत इस प्रकार और भी अनेक प्रन्यों में अनेक संघोंकरनेके लिये सामने आया ! अनेक प्रकारके वादिः का वर्णन मिलता है । इस लेखमें हमारा उद्देश त्रा और जयजयारवाँके प्रचंड घोपपूर्वक महान् सारे संघाँका इतिहास लिग्यनेका नहीं है, परंतु उत्सव क साथ, नगरम प्रवेश किया। सहर के संघ किस तरह निकाले जाते हैं उसका स्वरूप प्रसिद्ध प्रसिद्ध मुहल्ली और बाजाराम घूमता हुआ बतलाने का है। इस लिये नमुनेक तौर इतने वर्णन संघ, साधु क्षीमसिंहके बनाये हुए शान्तिनाथ- दे कर इस विषयको समाप्त किया जाता है । संघों. देव के मंदिर के सिंहद्वार पर पहुंचा । 'निसीही का क्रमवार इतिहास हम मी भविष्यमें लिखना निसीही नमो जिणाणं' इस वाक्य को तीन चार चाहते हैं। चोलता हुआ जिनालयमें जो कर, खरतरगच्छक
जेसलमेरके पटवोंके संघका वर्णन ।
ऊपर हमने तीर्थयात्राके लिये निकलनेवाले सं- ज्यो कि त्यो नकल दी जाती है । इस लेख की एक घाँका वर्णन' दिया है । इस प्रकारका पक वडा कापी प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी महाराजके शास्त्र भारी संघ गत शताब्दीके अंतम, मारवाडके जे- संग्रहमसे मिली है। जो उन्होंने किसी मारवाडी सलमेर नगरमें रहनेवाले पटवा नामसे प्रसिद्ध लहियक पास लिखवाई है और दूसरी नकल,घडीकुटुंबचाले ओसवालाने निकाला था। इस संघका दाके राजकीय पुस्तकालयके संस्कृत विभागक वर्णन, उसी कुटुंबका बनाया हुआ, जसलमेरके .
- सद्गत अध्यक्ष श्रीयुत चिमनलाल डाह्याभाई पास अमरसागर नामक स्थानमें जो जैन मंदिर है उसमें एक शिला पर, उसी समयका लिम्ला हुआ दलाल एम. ए. के पाससे मिली है जो उन्होंने मेरे हैं । यह शिलालग्न मारवाडी भाषाम और देवना- लिये जेसलमेरके किसी यतिके पाससे लिख मंगगरी लिपिम लिखा गया है । नीचे इस लेखकी वाई थी।