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श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह। दीपक ज्योति तिमिर क्षयकार, पूर्ज श्रीजिन केवलधार । परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थकर पद पाय, परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ ६ ॥ ___ओं ह्रीं दर्शविशुद्ध्यादिषोडशकारणभ्या दीपं० अगर कपूर गन्ध शुभ खेय, श्री जिनवर आगे महकेय । परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो । दाशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थकर पद पाय, परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ ७ ।। ___ओं ह्रीं दर्शविशुद्ध्यादिषोडशकारणभ्यां धूपं निर्व श्रीफल आदि बहुत फल सार, पूजं जिन बांछितदातार । परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।। दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थकर पद पाय, परम गुरु हो. जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ ८॥ ___ श्री ही दर्शविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः फलं निव जल फल आठों द्रव्य चढ़ाय, 'द्यानत' बरत कगें मनलाय । परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।। दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थकर पद पाय, परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ ९ ॥
ओं ह्रीं दर्शविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यो अघ०