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श्री जैन
पूजा-पाठ संग्रह |
सोलह अंगों के १६ अर्थ | साडेसा
पावे |
दरशन शुद्ध न होवत तो लग जीव मिथ्याती काल अनंत फिगं भवमें, महादुःखनको कहुं पार न दोष पचीस रहित गुण- अम्बुधि. सम्यकदर्शन शुद्ध ठरावे । 'ज्ञान' कहे नर सोहि बड़ो, मिथ्यात्व तजे जिन-मारग ध्यावै ॥ ह्रीं दर्शनविशुद्धभावनायें नमः श्रयं ॥ १ ॥ देव तथा गुरुराय तथा, तप संयम शील व्रतादिक-धारी । पापके हारक कामके लारक,
कर्म - निवारी |
शल्य - निवारक धर्मके धीर
कषायके
भेदक,
पंत्र
प्रकार संसारके तारी ।
१२
जो जो लग.
कहावे ।
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