________________
८८
श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। 'ज्ञान' कहे विनयो सुखकारक, भाव धरो मन राखो विचारी ॥
ओं ह्रीं विनयमम्पन्नताभावनाय नमः अर्घ ॥ २ ॥ शील सदा सुखकारक है, अतिचार-विवर्जित निर्मल कीजे । दानव देव करें तसु सेव, विषानल भूत पिशाच पतीजे । शील बड़ो जगमें हथियार, जु शीलको उपमा काहेकी दीजे । 'ज्ञान' कहे नहिं शील बरावर, तातें सदा दृढ़ शील धरीजे ॥
ओ ही निरतिचारशीलवतभावनाय नमः अर्थ ।। ३ ।। ज्ञान सदा जिनराजको भाषित.
आलस छोड़ पढ़े जो पढ़ावे । द्वादस दोउ अनेकहुं भेद. सुनाम मती श्रुति पंचम पावे ।