________________
श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह चार हुँ भेद निरन्तर भाषित, ज्ञान अभीक्षण शुद्ध कहावे । 'ज्ञान' कहे श्रु त भेद अनेक जु, लोकालोक हि प्रगट दिखावे ॥
ओं ह्रीं अभीक्ष्णज्ञानोपयोगभावनाय नमः अर्घ ॥ ४ ॥ भ्रात न तात न पुत्र कलत्र न, संयम सज्जन ए सब खोटो । मन्दिर सुन्दर काय सम्वा, सबको इहको हम अन्तर मोटो । भाउके भाव धरी मन भेदन, नाहिं संवेग पदारथ छोटो । 'ज्ञान' कहे शिव-साधनको जैसो, साहको काम करे जु वणोटो ॥
प्रों ह्रीं मंवेगभावनाय नमः अर्घ ॥ ५ ॥ पात्र चतुर्विध देव अनृपम, दान चतुर्विध भावसुं दीजे ।