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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
अभ्यागतको,
शनि - समान अति आदरसे प्रणिपत्य करीजे । देवत जे नर दान सुपात्रहि, तास अनेकहिं कारण सीजे | बोलन 'ज्ञान' देहि शुभ दान जु, भांग सुभूमि महासुख लीजे ॥
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श्रीं ह्रीं शक्तितत्यागभावनाये नमः अथ । ६ ॥
पाप
कर्म कठोर गिरावनको निज. शक्ति-समान उपोषण कीजे । बारह भेद तपे भेद तपे तप सुन्दर. जलांजलि काहे न दीजे । भाव धरी तप घोर करो नर. जन्म सदा फल काहे न 'ज्ञान' कहे कहे तप जे नर ताके अनेकहिं पातक कीजे ॥
लीजे
भावत,
ह्रीं शक्तितस्तपभावनाये नमः अयं ॥ ७ ॥