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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ६१ साधुसमाधि करो नर भावक, पुण्य बड़ो उपजे अघ छीजे । साधु की संगति धर्मको कारण, भक्रि करे परमारथ सीजे । साधुसमाधि करे भव छूटत, कीर्ति-छटा त्रैलोक में गाजे । 'ज्ञान' कहे यह साधु बड़ो, गिरिशृङ्ग गुफा बिच जाय विराजे ॥
प्रां ह्रीं माधुममाधिभावनाय नम: अघ ।। ८ ।। कर्मके योग व्यथा उदई मुनि, पुंगव कुन्तसभेषज कीजे । पीत कफान लसास भगन्दर, तापको मूल महागद छीजे । भोजन साथ बनायके औषध. पथ्य कुपथ्य विचार के दोज । 'ज्ञान' कहे नित ऐमी वैय्यावृत्य करे तस देव पनीजे ॥