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६२ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह । ___ओं ह्रीं वैयावृत्यकरणभावनाये नमः अर्घ ॥ ६ ॥ देव सदा अरिहन्त भजो जेई, दोष अठारा किये अति दूरा । पाप पखाल भये अति निर्मल, कर्म कठोर किये चकचूरा । दिव्य-अनन्त-चतुष्टय शोभित, घोर मिथ्यान्ध-निवारण सूरा । 'ज्ञान' कहे जिनराज अराधो, निरन्तर जे गुण-मन्दिर पूरा ॥
ओं ह्रीं अद्भक्तिभावनायै नमः अर्घ ॥ १० ॥ देवत ही उपदेश अनेक सु,
आप सदा परमारथ-धारी । देश विदेश विहार करें, दश धर्म धरें भव-पार उतारी । ऐसे अचारज भाव-धरी भज, सो शिव चाहत कर्म निवारी ।