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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
'ज्ञान' कहे गुरु-भक्ति करो नर, देखत हो मनमांहि विचारी ॥
ओं ह्रीं प्राचार्यभक्तिभावनाय नम: अर्घ ।। ११ ।। आगम छन्द पुराण पढ़ावत, साहित तर्क वितर्क बखाने । काव्य कथा नव नाटक पूजन, ज्योतिष वैद्यक शास्त्र प्रमाने । ऐसे बहुश्रु त साधु मुनीश्वर, जो मनमें दोउ भाव न आने । बोलत 'ज्ञान' धरी मनसान जु, भाग्य विषेशतें जानहिं जाने ॥ _ओं ह्रीं बहुश्रुतभक्तिभावनाय नमः अर्घ । १२ ॥ द्वादस अंग उपांग सदागम, ताकी निरंतर भक्ति करावे । वेद अनूपम चार कहे तस, अर्थ भले मन माहिं ठरावे ।
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