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६४ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। पढ़ बहु भाव लिखा निज अक्षर, भक्ति करी बड़ि पूज रचावे । 'ज्ञान' कहे जिन-आगम-भकि, करो सद-बुद्धि बहुश्रुत पाव ॥ __ा ही प्रवचनक्तिभावनाय नमः अर्थ ॥ १३ ॥ भाव धरे समता सब जीवसु, स्तोत्र पढ़े मुग्व से मनहारी । कायोत्सर्ग करे मन प्रीतसं, बंदन देव-तणों भव तारी । ध्यान धरी मद दूर करी, दोउ बेर करे पड़कम्मन भारी । 'ज्ञान' कहे मुनि सो धनवन्त जु, दर्शन ज्ञान चरित्र उधारी ॥
ओं ही आवश्यकापरिहाणिभावनाय नम: अर्घ ॥ १४ ॥ जिन-पूजा रचो परमारथसं, जिन आगल नृत्य महोत्सव ठाणों ।