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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। गावत गीत बजावत ढोल. मृदंगके नाद सुधांग वग्वाणो । संग प्रतिष्ठा रचो जल-जातरा. सदगुरुको साहमा कर आणो । 'ज्ञान' कहे जिनमार्ग प्रभावन, भाग्य-विशेषसुं जानहिं जाणो ॥
ओं ही मार्गप्रभावनाय नमः अयं ॥ १५ ॥ गौरव-भाव धरी मनसे मुनिपुङ्गवको नित वत्सल कीजे । शीलके धारक भव्यके तारक, तासु निरंतर स्नेह धरीजे । धेनु यथा निजबालकके, अपने जिय छोड़ि न और पतीजे । 'ज्ञान' कहे भवि लोक सुनो, जिन वत्सल भाव धरे अघ छीजे ॥
ओं ह्रीं प्रवचनवान्मल्यभावनाय नम: अत्र ॥ १६॥