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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह ___जाप-ओं ह्रीं दर्शनविशुद्ध्ये नमः. ओं ह्रीं विनयसम्पन्नतायै नम: ओं ह्रीं शीलवताय नम:. श्रां हां अभीक्ष्णयज्ञानोपयोगाय नमः. ओं ही सम्बंगाय नमः. ओं ह्रीं शक्तितम्त्यागाय नमः. श्री ह्रीं शक्तितस्तपस नमः ओं ह्रीं साधुसमाध्य नमः. ओं ह्रीं वैयावृत्यकरणाय नमः. श्रां ह्रीं अहत्यै नमः, ओं ह्रीं प्राचार्यभक्त्यै नमः. श्रीं ह्रीं बहुश्रुतभक्त्यै नमः. ओं ह्रीं प्रवचनभक्त्यै नमः. ओं ह्रीं आवश्यकापरिहाण्य नमः. ओं ह्रीं मार्गप्रभावनायें नम:. ओं ह्रीं प्रवचनवत्सलत्वाय नमः ।। १६ ।।
जयमाला दाहा। षोड़श कारण जे करें, हरें चतुरगति वास । पाप पुण्य सब नास के, ज्ञान भानु परकास ॥
चौपाई दर्श विशुद्ध धरे जो कोई, ताको आवागमन न होई । विनय महा धारे जो प्राणी, शिव वनिताकी सखी बखानी ॥२॥ शील सदा दृढ़ जो नर पाले, सो औरनकी आपद टाले । ज्ञान अभ्यास करे मन माहीं, ताके मोह महातम नाहीं ॥३॥ जो संवेग भाव विस्तार, स्वर्ग मुक्ति पद आप निहारे । दान देइ मनहर्ष विशेष, इह भव यश परभव सुख देखे ॥४॥ जो तप तप खप अभिलापा, चूरे कमशिखर गुरु भाषा । साधुसमाधि सदा मन लावै, तिहुं जग भोग भोगि शिव जावे ५।। निश दिन वयावृत्य करया, सो निश्चय भवनीर तरेया। जो अरहन्तभक्ति मन आने सो जन विषयकषाय न जान॥६॥