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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। जो आचारज भक्ति करे हैं, सो निरमल आचार धरै हैं। बहुश्रुतवन्त भक्ति जो करई, सो नर संपूरण श्रुत धरई ॥७॥ प्रवचन-भक्ति करे जो ज्ञाता, ल है ज्ञान परमानन्द दाता । षट आवश्यकाल जो माध, सोई रत्नत्रय आराध ॥८॥ धर्म प्रभाव करें जो ज्ञानी, तिन शिव मारग रीति पिछानी । वत्सल अंग सदा जो ध्यावे, सो तीर्थकर पदवी पावै ॥९॥
दाहा ये ही षोडश भावना, सहज धरै व्रत जोय । देव इन्द्र नागेन्द्र पद, 'यातन' शिव पद होय ॥ ओं ह्रीं दर्शनविशुद्धयादिशाडशकारगगभ्या अर्घ निवपार्मानि
मवया नईमा सुन्दर पोडशकारगण भावना निर्मल चित्त सु धारक धार, कर्म अनक हन अनि दुधर जन्म जरा भय मृत्यु निवारे । दुःख दरिद्र विपत्ति हरे भव-मागरको पर पार उतार, 'ज्ञान' कहे यही शोडशकारण कम निवारण सिद्ध सुधार।।
इत्याशीवादः। पंचमेरु पूजा।
गीता छन्द । तीर्थकरोंक हवन-जलतं. भये तीरथ शमंदा । तात प्रदच्छन दंत सुरगन, पंचमेरुनकी सदा ॥