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________________ ८४ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह | सोलहकारण पूजा | डिल्ल सोलहकारण भाय तीर्थंकर जे भये, हरपे इन्द्र पार मेरुपर ले गये । पूजा करि निज धन्य लखो बहु चावसों, हम हूं षोडस कारण भावें भावसों ॥ श्रीं ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिपोडश कारणानि अत्र अवतरत अवतरत संवौपट आह्वाननं अत्र तिष्टत तिष्ठत ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितानि भवत भवत वषट् सन्निधीकरणं । अथाष्टकम | कंचनझारी निर्मल नीर, पूजूं जिनवर गुणगंभीर, परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो । दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर पद पाय, परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो । श्रीं ह्रीं दर्शनविशुद्धि १. विनयसम्पन्नता २. शीलत्रतेष्वन-. तीचार ३. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग ४. संवेग ५. शक्तितस्त्याग ६, शक्तितस्तप ७. साधुसमाधि वैयावृत्यकरण ६ अर्हभक्ति १०. आचार्यभक्ति ११. बहुश्रुतभक्ति १२. प्रवचनभक्ति १३. आवश्यक परिहाणि १४. मार्गप्रभावना १५. प्रवचनवात्सल्य १६. इति षोडशकारणेभ्यो नमः जलं ।। १ ।।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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