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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। किसकी । तुम बिन दाता और न कोई शरण गहूं जिसकी|जय०॥४|| तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अंतरयामी. स्वामी तुम अंतरयामी। स्वर्ग मोक्षके दाता तुम हो त्रिभुवनके स्वामी ॥ जय० ॥ ५॥ दीनबंधु दुखहरण जिनेश्वर ! तुम ही हो मेरे. स्वामी तुम ही हो मेरे। द्या शिवधामको वास दास, हम द्वार खड़े तेरे ॥ जय० ॥ ६ ॥ विपद विकार मिटाओमनका अर्ज सुना दाता, स्वामी अर्ज सुनोदाता। मवक द्वयकर जाड़ प्रभूकं चरणों चित लाता ।। जय पारश० ॥७॥
इति ।
के समाप्त *