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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह ।
मंत्रहीन धनहीन हूँ क्रियाहीन जिनदेव । नमा करहु राग्वहु मुझे, देहु चरणकी सेव ॥३॥
आये जो जो देवगन, पूजे भकि प्रमान । ते सव जावहु कृपाकर, अपने अपने थान ॥४॥
इत्याशीवादः। आशिका लेनका मन्त्र ।
दाहा। श्री जिनवरकी आशिका. लीजे शीस चढ़ाय । भव भवके पातक कटें. दुःश्व दूर हो जाय ॥१॥
आरती श्री पाश्वनाथ म्वामी की ।
( चाल. जय जगदीश हर ) जय पारश दवा म्वामा जय पारश देवा । मुर नर मुनि जन तव चरगानका करत नित सवा टर।। पाप वदा ग्याग्स काशी में आनन्द अनि भार्ग, म्वानी आनन्द अति भार्ग । अश्वसेन वामा माता उर लाना अवनाग ।। जय ||१|| श्याम वरण नवहम्त काय पग-उग्ग लखन माह म्वामी उग्ग लखन साहै। सुरकृत अति अनप पट भूषण सबका मन माह ।। जय०।। जलत देख नाग नागिनका मंत्र नवकार दिया, म्वामी मंत्र नवकार दिया । हरा कमठका मान ज्ञान का भानु प्रकाश किया ।।जय।। मात पिता तुम स्वामी मर. आश कम किसकी. म्वामी ' आश कर