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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह।
दोहा। सुख देना दुख मेटना, यही तुम्हारी वान । मो गरीवकी बीनती, सुन लीज्यो भगवान ॥१६॥ पूजन करते देवकी, आदि मध्य अवसान । सुरगन के सुख भोगकर, पावै मोन निदान ॥२०॥ जैसी महिमा तुमविर्षे, और धरै नहिं कोय । जो सूरजमें जाति है, नहिं तारागण सोय॥२१॥ नाथ तिहारे नामतें, अघ छिनमांहिं पलाय । ज्यों दिनकर परकाशतं, अंधकार विनशाय २२॥ बहुत प्रशंसा क्या करू', में प्रभु बहुत अजान। पूजाविधि जान नहीं, सरन राखि भगवान ॥२३॥
विसर्जन बिन जाने वा जानके, रही टूट जो कोय । तुव प्रसाद तें परमगुरु, सो सब पूरन होय ॥१॥ पूजनविधि जानों नहीं, नहिं जानों आह्वान । और विसर्जन हू नहीं, नमा करो भगवान ॥२॥