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________________ ८० श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह तुम कर्मघाता मोक्षदाता, दीन जानि दया करो। सिद्धार्थनंदन जगतवंदन, महावीर जिनेश्वरो ॥१०॥ छत्र तीन सोहें सुरनर मोहैं, वीनती अब धारिये । करजोड़ि सेवक वीन. प्रभु आवागमन निवारिये ॥११॥ अब होउ भव भव स्वामि मेरे, मैं सदा सेवक रहों । करजोड़ यो वरदान मांग, मोक्षफल जावत लहों ॥१२॥ जो एक मांहीं एक राजे एक मांहि अनेकनो । इक अनेककी नहीं संख्या नमं सिद्ध निरंजनो ॥१३॥ चौपाईमैं तुम चरणकमलगुणगाय, बहुविधि भक्ति करौं मनलाय । जनम जनम प्रभु पाऊं तोहि, यह सेवाफल दीजे मोहि॥१४॥ कृपा तिहारी ऐसी होय, जीवन मरन मिटावो मोय । बारबार मैं विनती करू, तुम सेयां भवसागर तरू॥१५॥ नाम लेत सब दुःख मिटजाय, तुम दर्शन देख्यो प्रभु आय । तुम हो प्रभु देवनके देव, मैं तो करू चरण तव सेव ॥१६॥ जिन पूजा तैं सब सुख होय, जिन पूजा सम अवर न कोय । जिनपूजाः स्वर्ग विमान, अनुक्रम तैं पावै निर्वाण ॥१७॥ मैं आयो पूजनके काज, मेरो जन्म सफल भयो आज । पूजा करके नवाऊ शीश, मुझ अपराध क्षमहु जगदीश ॥१८॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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