________________
भी जन पूजा-पाठ संग्रह
स्नग्धरा छन्द। होवै सारी प्रजाको, सुख बलयुत हो धर्मधारी नरेशा। होवै वर्षा समै पै तिलभर न रहै व्याधियों का अन्देशा। होवै चोरी न जारी, सुसमय वरतै हो न दुष्काल भारी। सारे ही देश धारें, जिनवर वृषको जो सदा सौख्यकारी ॥७॥
___ दोहाघातिकर्म जिन नाश करि, पायो केवलराज । शांति करें ते जगतमें, वृषभादिक जिनराज॥८॥
मन्दाक्रान्ता। शास्त्रों का हो, पठन सुखदा, लाभ सत्संगती का। सद्वृत्तों का, सुजस कहके, दोष ढांकू सभीका ॥