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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह दिव्य विटप पुहुपनकी वरषा, दुन्दुभि आसन वाणी सरसा । छत्र चमर भामण्डल भारी, ये तुव प्रातिहार्य मनहारी ॥३॥ शांति जिनेश शांति सुखदाई, जगतपूज्य पूजौं शिरनाई । परमशांति दीजै हम सबको, पढ़ें तिन्हें पुनि चार संघको ॥४॥ पूर्जे जिन्हें मुकुट हार किरीट लाके, इन्द्रादि देव अरु पूज्य पदाब्ज जाके । सो शांतिनाथ वरवंश जगतप्रदीप, मेरे लिये करहिं शांति सदा अनूप ॥५॥
___ इन्द्रवत्रा संपूजकों को प्रतिपालकों को, यतीन को औ यतिनायकों को। राजा प्रजा राष्ट्र सुदेश को ले, कीजै सुखी हे जिन शांति को दे ॥६॥