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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
जिनराय मैं ; जी निपट अज्ञानी महाराज । यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जी रे कारणे ॥३॥ प्रभूजी थांका तो रूपजी निरखन कारणे, सुरपति रचिया छ नयन हजार महाराज । यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जी रे कारणे ॥४॥ प्रभूजी नरक निगोदमें भव भव मैं रुल्यो, जिनराय सहिया छ दुःख अपार महाराज । यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जो रे कारणे ॥५॥ प्रभूजी अब तो शरणोजी थारो मैं लियो, किस विधि कर पार लगावो महाराज । यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जी रे कारणे ॥६॥ प्रभूजी म्हारो तो मनड़ो थांमेंजी घुल रह्यो, ज्यों चकरी बिच रेशमकी डोरी महाराज । यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जी रे कारणे ॥७॥ प्रभृजी तीन लोक में है जिन-विम्ब, कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पूजस्यां । प्रभूजी जल चंदन अक्षत पुष्प नैवेद, दीप धूप फल अर्घ चढ़ाऊं महाराज, जिन चैत्यालय महाराज, सब चैत्यालय जिनराज ।