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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
७१ ओं ह्रीं श्रीमन्वादिचारणऋद्धिधारकसप्तऋषिभ्यः पूर्घ नि.
ब्रतों का अर्घ उदकचंदनतंदुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधूपफलापकैः । धवलमंगलगानवाकुले जिन गृहे जिनवृत्तमहं यजे ॥१॥ ओं ह्रीं श्रीभगवज्जिनभाषितवतेभ्यो अर्घ्य निर्व० ॥१॥
समुच्चय अर्घ प्रभूजी अष्ट दरबदरवजु ल्यायो भावसों, प्रभू थां का हरप हरष गुण गाऊं महाराज। यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जी रे कारणे ॥ प्रभू जी थांकी तो पूजा भवि जन नित कर, जाका अशुभ कर्म कट जाय महाराज । यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जी रे कारणे ॥१॥ प्रभूजी थांकी तो पूजा भवि जीव जो कर, सो तो सुरग मुकतिपद पात्र महाराज । यो मन हरख्यो प्रभू थांकी पूजा जी रे कारणे ॥२॥ प्रभूजी इन्द्र धरणेंद्रजी सब मिलि गाय, प्रभू का गुणांको पार न पाइया । प्रभूजी थे छो जी अनन्ता जी गुणवान, थांने तो सुमरयां संकट परिहरै। प्रभूजी थे छो जी साहिव तीनों लोक का,