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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह जय ग्रीषमऋतु परवत मँझार, नित करत अतापन योगसार । जय तृपापरीपह करत जेर, कहुं रंच चलत नहिं मनसुमेर ११।। जय मूल अठाइस गुणनधार, तप उग्र नपत आनंदकार । जय वर्षाऋतुमें वृक्षतीर, तहँ अति शीतल झेलत समीर ॥१२॥ जय शीतकाल चौपटमँझार, के नदी सरोवर तट विचार । जय निवसत ध्यानारूढ़ होय, रंचक नहिं मटकत रोम कोय १३॥ जय मृतकासन वज्रासनीय, गोदूहन इत्यादिक गनीय । जय आसन नाना भांतिधार, उपसर्ग सहत ममता निवार॥१४॥ जय जपत तिहारो नाम कोय, लख पुत्र पौत्र कुलवृद्धि होय । जय भरे लक्ष अतिशय भंडार, दारिद्र तनों दुख होय छार १५॥ जय चोरअग्निडाकिनपिशाच, अरु ईति भीति सब नसत सांच। जय तुम सुमरत सुख लहत लोक, सुर असुरनवत पद देत धोक १६
छन्द रोला। ये सातों मुनिराज, महातप लछमी धारी। परम पूज्य पद धरें, सकल जगक हितकारी ॥ जो मन वच तन शुद्ध होय सेवे औ ध्यावै । सो जन मनरंगलाल अष्टऋद्धिनकौं पावे ॥१७॥
दाहा।
नमन करत चरनन परत, अहो गरीब निवाज । पंच परावतेननितें, निरवारो ऋषिराज ॥१८॥