________________
श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
६१ औगुन हरौ गुन करो हमको, जोरकर विनती कगें ॥ सम्मेदगिरि गिरनार चंपा. पावापुरि कैलासकों। पूजों सदा चौवीसजिननिर्वाण. भूमि निवासकों ॥३॥ श्रां हां श्रीचन व शतिनाथ निवाग नत्र या अनमान नि.. || || शुभ फूलगस मुवामवामित. ग्वेद सब मनकी हगें। दुग्वधामकाम विनाश मग जागकर विनती कगें॥ सम्मदगिरि गिरनार चंपा. पावापुरि केलामको। पूजों सदा चौवीमजिननिर्वाण. भृमि निवासकों ॥१॥ अं ही श्रीच शनायकनिवागा नाम: पप्पं नि ।। नेवज अनेक प्रकार जाग. मनोग धरि भय परिहग।