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६४ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह नों ही श्रीचतुर्विशतिनाथकरनिर्वाण नत्रभ्यः फलं नि० ॥८।। जल गंध अनत पुष्प चम फल, दीप धृपायन धरौं । 'द्यानन' को निग्भय जगतमों, जोरकर विनती कगें । सम्मदगिरि गिरनार चंपा. पावापुरि कैनासको । पूजों सदा चौवीमजिननिर्वाण भूमि निवासकों ॥६॥ श्रा ही श्रीचव शाननीयकनिवाग नत्र या अन्य नि ॥६॥
थ जयमाला। श्रीचौवीसजिनेश. गिरि कैलाशादिक नमों । नीरथ महाप्रदेश. महापुम्प निरखागानं ॥
चपाई मात्रा। नमों ऋषभ कनामपहार. नेमिनाथ गिरनार निहारं । वामपन्य चंपापुर वंदा, मनमनि पावापुर अभिनंदा ।।१।। चंदी अजित जनपददाता, की मंभव भवदयघाना । बंदी अभिनदन गणनायक. बंदी सुमनि मुमति के दायक।।२।।