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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह
संसार पार उतार स्वामी, जोरकर विनती करों ॥ सम्मेदगिरि गिरनार चंपा. पावापुरि कैलासकों। पूजों सदा चौबीसजिननिर्वाणभृमि निवासकों ॥१॥ आ ही श्राच व शनिनाथकरनिर्वाण नत्रभ्या जलं निर्व, स्वाहा ।। केशर कपूर सुगंध चंदन सलिल शीतल विस्तगे, भवतापको संताप मटा, जारकर विनती करा॥ सम्मेद गिरि गिरनारि चंपा, पावापुरि कैलासका। पूजों सदा चौवीसजिन निर्वाणभूमि निवासको ॥२॥ श्रां ह्रीं श्रीचतुर्विशतितार्थ करीनागनत्रभ्या चंदनं नि । मोतीसमान अखंड तंदल. अमल आनंद धरि तरौं ।