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________________ श्री जैन पूजा-पाठ साह। ५६ तिनपदजुगचंदा उदय अमंदा, वावस वंदा हितधारी ॥६॥ ओं ह्रीं श्रीवृपभादिचतुर्विशतिजिनभ्या महाघ निव० स्वाहा ।। सोरठाभुनि मुक्रि दातार, चौबीसों जिनराजवर । तिनपद मनवचधार, जो पूजे सो शिव लहै ॥ ( इत्याशीर्वादः । पुष्पाञ्जलिं क्षिपन ) निर्वाणक्षेत्र पूजा सारठापरम पूज्य चौवीस, जिहँ जिहँ थानक शिव गये। सिद्धभूमि निशदीस, मनवचतन पूजा करों ॥१॥ ओ ह्रीं चतुर्विनितीर्थ निवारण क्षेत्रागिण । अत्र अवतरत अवनग्न. संवीपट अाह्वाननं । श्रां ह्री चतुविशनितीर्थकरनिवागाक्षत्राणि । अत्र निष्ठत निष्टन, ठः ठः स्थापनं । ओं ह्रीं चतुर्विशातितीथकरनिर्वाण क्षेत्राणि : अत्र मम सन्निहितानि भवन भवन वपट मन्निधिकरणं । गीता छन्द। शुचि क्षीरदधि सम नीर निरमल, कनकझारी में भरों।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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